लेखक बनना कोई बड़ी बात नहीं है। किसी भी इन्सान को अपने मन के भाव कागज पर उतारने का पूर्ण हक है। लेकिन लेखक बनकर समाज में रहते हुए कुछ अनबोले विषयों पर चोट करना जिन का कोई जिक्र भी नहीं करना चाहता, बेहद ही जोखिम भरा काम होता है क्योंकि इन मुद्दों को उठा कर आप समाज की आँखों की किरकरी बन सकते हो। लोग समस्या को समझने की बजाय लेखक को ही एक समस्या बना डालते हैं। लेकिन मैंने सदा बेबाक होकर डंके की चोट पर कुछ अनकहे पहलुओं को उठाने की कोशिश की है। क्यांेकि कतार शुरू करने के लिए किसी न किसी को तो पहले अंक पर खड़े होना ही पड़ेगा। धीरे-धीरे यह कतार खुदबखुद लम्बी होती जाएगी। आशा करती हूँ ‘‘काँच के गिलास’’ एवं ‘‘जाति न पूछो मेरी’’ पुस्तक के बाद मेरी नई पुस्तक ‘‘शहद से रिश्ते’’ को भी उतना ही प्यार देंगे जितना आज तक देते आए हैं। अपनी लेखनी को जारी रखने के लिए आपकी शुभकामनाओं की इच्छुक।
लेखिका
चारू नागपाल