बिहार राजà¥à¤¯ के मà¥à¤œà¤«à¥à¤«à¤°à¤ªà¥à¤° जिला अनà¥à¤¤à¤°à¥à¤—त उमापत वसंत गाà¤à¤µ में जनà¥à¤®à¥‡à¤‚ à¤à¤µà¤‚ वरà¥à¤¤à¤®à¤¾à¤¨ में रेल डिबà¥à¤¬à¤¾ कारखाना,कपूरथला में वरिषà¥à¤ अनà¥à¤à¤¾à¤— अà¤à¤¿à¤¯à¤‚ता के पद पर कारà¥à¤¯à¤°à¤¤ शà¥à¤°à¥€ पà¥à¤°à¤µà¥€à¤£ कà¥à¤®à¤¾à¤° के परिवार में चार à¤à¤¾à¤ˆà¤¯à¥‹à¤‚ के अलावा पिता -शà¥à¤°à¥€ गंगाधर à¤à¤¾ ,माता -शà¥à¤°à¥€à¤®à¤¤à¥€ शशि देवी ,पतà¥à¤¨à¥€ -शà¥à¤°à¥€à¤®à¤¤à¥€ सà¥à¤·à¤®à¤¾ à¤à¤¾ à¤à¤µà¤‚ पà¥à¤¤à¥à¤° -पà¥à¤°à¤¿à¤¯à¤¾à¤‚शॠà¤à¤¾ हैं। अति वà¥à¤¯à¤¸à¥à¤¤ डà¥à¤¯à¥‚टी के बावजूद इनà¥à¤¹à¥‡à¤‚ हिनà¥à¤¦à¥€ लेखन के लिठà¤à¤¾à¤°à¤¤à¥€à¤¯ रेल दà¥à¤µà¤¾à¤°à¤¾ कई पà¥à¤°à¤¸à¥à¤•à¤¾à¤° à¤à¤µà¤‚ पà¥à¤°à¤¶à¤¸à¥à¤¤à¤¿ पतà¥à¤° पà¥à¤°à¤¾à¤ªà¥à¤¤ हो चà¥à¤•à¥‡ हैं । 'कलियà¥à¤— का अंत' à¤à¤• कावà¥à¤¯ रचना है, जिसमें 'कलियà¥à¤—' यà¥à¤— का पà¥à¤°à¤¤à¤¿à¤¨à¤¿à¤§à¤¿à¤¤à¥à¤µ करता है, और संसार के सà¤à¥€ दà¥à¤·à¥à¤Ÿ ,अनाचारी और सामरà¥à¤¥à¥à¤¯à¤¶à¤¾à¤²à¥€ लोगों का नायक है। विधि के विधान के अनà¥à¤¸à¤¾à¤° 'कलियà¥à¤—' सà¤à¥€ यंतà¥à¤°à¥‹à¤‚ à¤à¤µà¤‚ ततà¥à¤°à¥‹à¤‚ से सà¥à¤¸à¤œà¥à¤œà¤¿à¤¤ और अजेय है। जब कलियà¥à¤— में आसà¥à¤°à¥€ पà¥à¤°à¤µà¥ƒà¤¤à¥à¤¤à¤¿ के लोगों के पाखणà¥à¤¡ से धरती तà¥à¤°à¤¾à¤¹à¤¿ -तà¥à¤°à¤¾à¤¹à¤¿ करने लगी तब ईशà¥à¤µà¤° ने यà¥à¤— के पाखणà¥à¤¡ का à¤à¥‡à¤¦ खोलने शिव के आधे अंश यानि शव (शकà¥à¤¤à¤¿à¤µà¤¿à¤¹à¥€à¤¨ शिव ) को लाचार रूप में धरती पर à¤à¥‡à¤œà¤¾ ताकि दà¥à¤¨à¤¿à¤¯à¤¾à¤ को दिखाया जाये कि सà¥à¤µà¤¾à¤°à¥à¤¥ में दिन -रात ईशà¥à¤µà¤° के सामने फ़ैलने वाले हाथ जब ईशà¥à¤µà¤° को लाचार देखते हैं तो कैसा वà¥à¤¯à¤µà¤¹à¤¾à¤° करते हैं ? कावà¥à¤¯ में सà¥à¤° -असà¥à¤° के संघरà¥à¤· की सांकेतिक गाथा है ,जिसे अरà¥à¤¥ पाने के लिठ'कलियà¥à¤—' के अंत का इंतजार है । निशà¥à¤šà¤¯ ही हिनà¥à¤¦à¥‚ धरà¥à¤® की अवधारणा के अनà¥à¤¸à¤¾à¤° कालांतर असà¥à¤°à¥‹à¤‚ के अंत के बाद नठयà¥à¤— दà¥à¤µà¤¾à¤°à¤¾ असà¥à¤°à¥‹à¤‚ दà¥à¤µà¤¾à¤°à¤¾ पà¥à¤°à¤¤à¤¾à¥œà¤¿à¤¤ शिव के शव को शà¥à¤°à¥€ हरि सहित पाà¤à¤š देवताओं के पà¥à¤°à¤¯à¤¾à¤¸à¥‹à¤‚ के कारण अलग - अलग अवतारों में महिमा मंडित किया जाà¤à¤—ा ,साथ ही उनका जनà¥à¤® सà¥à¤¥à¤¾à¤¨ à¤à¥€ à¤à¤• तीरà¥à¤¥à¤¸à¥à¤¥à¤¾à¤¨ के रूप में विशà¥à¤µ विखà¥à¤¯à¤¾à¤¤ हो जाà¤à¤—ा । कावà¥à¤¯ में देव ,असà¥à¤° सà¤à¥€ यà¥à¤— के अनà¥à¤°à¥‚प हैं ,साथ ही विजà¥à¤žà¤¾à¤¨ और तरà¥à¤• दोनों की दृषà¥à¤Ÿà¤¿ से वà¥à¤¯à¤µà¤¹à¤¾à¤°à¤¿à¤• à¤à¥€ हैं। कावà¥à¤¯ में सांकेतिक à¤à¤¾à¤·à¤¾ का पà¥à¤°à¤¯à¥‹à¤— किया गया है । पà¥à¤°à¤µà¥€à¤£ कà¥à¤®à¤¾à¤° का मानना है कि बहà¥à¤¤ बातें जो हम विà¤à¤¿à¤¨à¥à¤¨ वजहों से नहीं कह पाते हैं ,कावà¥à¤¯ में संकेतों के माधà¥à¤¯à¤® से बिना लकà¥à¤·à¥à¤®à¤£ रेखा उलà¥à¤²à¤‚घन के कह जाते हैं । à¤à¤¾à¤·à¤¾ समà¥à¤¬à¤¨à¥à¤§à¥€ तà¥à¤°à¥à¤Ÿà¤¿à¤¯à¥‹à¤‚ को माफ़ करते हà¥à¤ कृपया अपनी पà¥à¤°à¤¤à¤¿à¤•à¥à¤°à¤¿à¤¯à¤¾à¤à¤‚ नीचे दिठगठमोबाइल नमà¥à¤¬à¤° या ईमेल पर जरूर à¤à¥‡à¤œà¤¿à¤à¤—ा :
ईमेल : jha02101969@gmail.com
मोबाइल नमà¥à¤¬à¤°: 9501447241
kalyug ka ant kaise hoga, kya kalyug ka ant hone wala hai, kalyug ka ant aa gya hai, KALYUG KA ANT by prawin kumar, rigi publication, spiritual self help, spirituality self help books, self help books for women, self help books,