क्या कभी ऐसा लगा है कि ये फूल, ये आसमान, ये नज़ारे, सब और ज़्यादा रंगीन हो गये हैं ?? या कभी ऐसा लगा हो कि उसको देखे बिना दिन पूरा नहीं होता ?? कभी ना कभी तो आपकी नज़रें किसी प्यारे से मुखड़े पे अटकी ही होंगी और आपके दिल ने धीरे से कहा होगा "यही तो है वो !!" | ये भी हो सकता है की रात की नींदें उड़ गयी हों और आपके मन में बस उस ही का ख़याल हो | या फिर आप अपनी मोहब्बत की किसी पुरानी मीठी याद को लेकर मन उदास किए बैठे हैं? अगर इन में से एक भी सवाल पे आपके मन में किसी का स्मरण हुआ है, तो मेरे दोस्त आप भी शिकार हो गए हैं – इश्क़ के शिकार !! इश्क़, मोहब्बत, प्यार - एहसास भरे हुए वो शब्द हैं जो की हर युवा दिल कभी ना कभी ज़रूर गुनगुनाता है | इन्हीं एहसासों को शब्दों में बयान करने की एक प्यारी सी कोशिश है 'लफ्ज़.. दिल से' |
कवि के बारे में :
बचपन से ही हिन्दी काव्य में रुचि रखने वाले हर्षित अग्रवाल का जन्म कानपुर शहर में १६ अक्तूबर १९९३ को हुआ | कोलकाता के दिल्ली पब्लिक स्कूल मेगासिटी से उच्च-माध्यमिक परीक्षा में सफलतापूर्वक उत्तीर्ण होने के बाद उन्होंने बेंगलुरू शहर के ‘क्राइस्ट यूनिवर्सिटी’ से 'बैचलर ऑफ कॉमर्स (प्रोफेशनल)' डिग्री प्राप्त की | साथ ही उन्होंने 'चार्टर्ड इंस्टीट्यूट ऑफ मैनेजमेंट एकाउंटेंट्स, लंडन' की परीक्षा में सफलता पाई और ग्रेजुएशन के उपरांत 'PwC Bangalore LLP' में अपने प्रोफेशनल करियर की शुरुआत की |
स्कूल के दिनों से ही हर्षित ने हिन्दी व अँग्रेज़ी काव्य में अपनी दिलचस्पी दिखाई और उनकी कविताएँ स्कूल मैगजीन व कोलकाता हिन्दी दैनिक 'सन्मार्ग' में प्रकाशित हुईं | उनकी कविताओं को इंटर-स्कूल व इंटर-कॉलेज प्रतियोगिताओं में खूब प्रशंसा और पुरस्कार मिले और अपने परिवारजनों व अध्यापकों के प्रोत्साहन से उन्होंने अपना पहला काव्य-संग्रह 'लफ्ज़... दिल से' प्रकाशित करवाया है |