देश और समाज हम सबकी जिम्मेवारी हैं । हर नागरिक अपने अपने सुलभ प्राकर्तिक गुणों और कर्मो के अनुसार देश के लिए कोई न कोई योगदान देता हैं । उत्तर प्रदेश से शिक्षा के साथ राजनीती विरासत में मिलती हैं । और यही कुछ मुझ जैसे आम आदमी के साथ हुआ, राजनीती की समझ और राजनैतिक कलावाज़िया देखते देखते ४५ साल का युवा हूँ और अनुभव अपने देशवासिओं के साथ बाँटना में अपनी जिम्मेवारी समझता हूँ । इसी लिए लोकसभा के चमत्कारी वायदों को सामने सर्वाधिक आशाओं का युवा नेता क्यों एक अनुभवी नेता के सामने अपने घुटने टेक कर बैठ गया? एक राष्ट्रीय पार्टी ४० पर सिमट गयी एक जादू के सामने ........
इसी उतार चड़ाव के एक एक घटना को आपके सामने रख रहा हूँ । हो सकता हैं आप असहमत हो तो ज़रूर आलोचना करना। ये किताब आलोचना के लिए ही लिख पाया हूँ । आप मुझे मेरी गलतिया ज़रूर बताए ।